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देशहित में कुछ कहने और करने की इच्छाशक्ति सिर्फ प्रधानमंत्री मोदी जैसे नेता में ही संभव है

संवाद की कला में निपुण हुए बिना कोई नेता महान नहीं बन सकता। महान नेताओं की खूबी होती है कि वे लोगों से जब भी बात करते हैं तो उनसे भावनात्मक रूप से जुड़ जाते हैं। फिर उनकी बात से प्रेरित होकर लोग वह कर गुजरते हैं, जिसका उन्हें भी पूर्वानुमान नहीं होता। पिछले पांच साल में हम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ऐसा करते हुए देख चुके हैं। स्वच्छ भारत अभियान ने पांच साल में इस देश के लोगों का व्यवहार ही नहीं, आदत भी बदल दी। देशवासियों के इस सहयोग के कारण प्रधानमंत्री इस समय आत्मविश्वास से लबरेज हैं। 73वें स्वाधीनता दिवस पर लाल किले की प्राचीर से उनका संबोधन इसका प्रमाण है।

मोदी ने लाल किले से की आम जन के लिए घोषणाएं

प्रधानमंत्री ने यूं तो लाल किले से बहुत-सी बातें कहीं, लेकिन आज जिक्र उन मुद्दों का जिनका तात्कालिक राजनीतिक नफा-नुकसान से कोई सीधा वास्ता नहीं है। ये मुद्दे किसी वोट बैंक को ध्यान में रखकर नहीं उठाए गए हैं। ये मुद्दे ऐसे भी नहीं जिनका प्रभाव कुछ साल के लिए या सरकार के कार्यकाल तक के लिए हो। ऐसी बातें वही कर सकता है जिसमें दलगत राजनीतिक स्वार्थ से ऊपर उठकर देशहित में कुछ कहने, करने का माद्दा हो। इस संदर्भ में जनसंख्या नियंत्रण, जलजीवन मिशन, सिंगल यूज प्लास्टिक के इस्तेमाल से परहेज, रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग में कमी, जिलों के हस्तशिल्प उत्पादों के निर्यात, कृषि उत्पादों के निर्यात और घरेलू पर्यटन को बढ़ावा देने जैसे मुद्दों का जिक्र जरूरी है।

छोटा परिवार रखना देशभक्ति है

सबसे पहले जनसंख्या नियंत्रण की बात करते हैं। यह ऐसा विषय है जिसके बारे में कोई राजनीतिक दल सपने में भी बोलने से डरता था। इस मुद्दे का जिक्र आते ही लोगों को आपातकाल के जमाने की ज्यादतियां याद आ जाती हैं, पर मोदी इससे डरकर चुप नहीं रहे। उन्होंने इस मुद्दे को उठाते हुए कहा भी कि कुछ बातें दलगत राजनीति से उठकर होनी चाहिए। उन्होंने जनसंख्या विस्फोट की विकराल समस्या से लोगों को आगाह किया, पर वह यहीं नहीं रुके। कहा कि छोटा परिवार रखना भी देशभक्ति है, पर जो छोटा परिवार रखते हैं उन पर ज्यादा बच्चे पैदा करने वालों का बोझ नहीं डाला जा सकता। हालांकि उन्होंने अभी इस संबंध में किसी कानून की बात नहीं की है, पर इस बात को उनके इस कथन के संदर्भ में देखा जाना चाहिए कि हम समस्याओं को न पालते हैं, न टालते हैं।

बढ़ती आबादी और चुनौतियां

दरअसल दुनिया भर में यह माना जाता है कि जनसंख्या वृद्धि की दर इतनी होनी चाहिए जिससे नई पीढ़ी लगभग उसी अनुपात में पुरानी पीढ़ी का स्थान ले सके। विशेषज्ञों का मानना है कि यह रिप्लेसमेंट रेट यानी प्रतिस्थापन दर 2.1 होनी चाहिए। जबकि देश में यह दर 2.2 है। समस्या इस बात से और बढ़ जाती है कि सात राज्यों उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड और असम में यह ढाई से 3.2 तक है। इन सात राज्यों में देश की 45 फीसद आबादी बसती है। बढ़ती आबादी कई तरह के असंतुलन और चुनौतियां लेकर आती है।

जलजीवन मिशन

पानी के संकट को उन्होंने जलजीवन मिशन का नाम दिया। देश के 75 फीसद लोगों को पीने का शुद्ध पानी उपलब्ध नहीं है। इस मुद्दे का जिक्र करते हुए उन्होंने महिलाओं की परेशानियों का जिक्र किया, जिन्हें कई-कई किलोमीटर चलकर पानी लाना पड़ता है। सरकार अगले पांच साल में जलजीवन मिशन पर साढ़े तीन लाख करोड़ रुपये खर्च करने वाली है। जल संरक्षण से जल संचयन तक उन्होंने सभी चुनौतियों का जिक्र किया। इसी तरह प्रधानमंत्री ने एक बार इस्तेमाल किए जाने वाले प्लास्टिक से परहेज करने की अपील की तो साथ ही किसानों से कहा कि अपने खेतों में रासायनिक खादों का इस्तेमाल कम करें।

पर्यटन रोजगार का जरिया

रासायनिक खादों के इस्तेमाल से न केवल जमीन की उर्वरा शक्ति घट रही है, बल्कि भूमिगत जल भी प्रदूषित हो रहा है। निर्यात को बढ़ावा देने पर जोर देते हुए उन्होंने कहा कि हमारा किसान अपने उत्पाद का निर्यातक क्यों नहीं हो सकता। साथ ही उन्होंने हस्तशिल्प को प्रोत्साहित करने के लिए कहा कि जिले के हस्तशिल्प उत्पाद के निर्यात का प्रयास होना चाहिए। पर्यटन उद्योग के विकास के लिए मोदी ने लोगों से अपील कि वे 2022 तक देश के पंद्रह पर्यटन स्थलों पर जाएं। पर्यटन रोजगार का बड़ा जरिया है।

मोदी पर भरोसा

जनसंख्या और जलजीवन मिशन के अलावा बाकी लक्ष्य ऐसे हैं जिन्हें आसानी से हासिल किया जा सकता है। इन मुद्दों पर कामयाबी उनकी अपील के असर पर निर्भर है। प्रधानमंत्री पद पर रहते हुए नरेंद्र मोदी को पांच साल से ज्यादा समय हो चुका है। वह 2014 में आए थे तो स्वयं को ‘सिस्टम’ से बाहर वाला बताकर बदलाव का वादा किया था। पांच साल बाद भी उन्होंने लाल किले से खुद को एक बार फिर बदलाव के वाहक के रूप में पेश किया है। बड़ी बात यह है कि लोगों को उनको इस भूमिका में स्वीकार करने से कोई गुरेज नहीं है। लोगों को मोदी पर यह भरोसा उनकी सरकार के पांच साल के काम से बना है। ऐसा भरोसा तभी बनता है जब लोगों को नेता की नीति ही नहीं नीयत पर भी यकीन हो।

मोदी का लाल किले से छठा संबोधन

प्रधानमंत्री का यह आत्मविश्वास नए जनादेश और उनकी अपील को आगे बढ़कर जन अभियान बना देने के लोगों के संकल्प से उपजा है। प्रधानमंत्री मोदी का लाल किले से छठा संबोधन एक कुशल प्रशासक और समाज सुधारक का समन्वय था। साल 2014 में केंद्र में सत्ता संभालने के बाद से उनका सतत प्रयास रहा है कि समाज की शक्ति को जगाया जाए। भारतीय संस्कृति और परंपरा में सत्ता की शक्ति से ज्यादा अहमियत समाज की शक्ति की रही है। सत्ता पर आवश्यकता से ज्यादा निर्भरता किसी समाज और देश को बहुत आगे नहीं ले जा सकती। इस बात को प्रधानमंत्री अच्छी तरह समझते हैं।

मोदी की जुगलबंदी को लोग भांप नहीं पाए

उन्होंने पहले ही इस बात को समझ लिया था कि पिछली सरकारें अपेक्षित गति से देश का विकास नहीं कर पाईं तो इसका कारण केवल राजनीतिक इच्छाशक्ति का अभाव नहीं था। नेता की राजनीतिक इच्छाशक्ति तभी फलीभूत होती है जब उसे आम लोगों का समर्थन और सहभागिता मिले। पिछले पांच वर्षों में मोदी भारतीय समाज की इस शक्ति को जगाने में कामयाब रहे हैं। आम लोगों के साथ उनकी इस जुगलबंदी को उनके राजनीतिक विरोधी या तो भांप नहीं पाए या उस पर यकीन नहीं किया। नतीजा सबके सामने है।

Hind Brigade

Editor- Majid Siddique


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