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Chandrayaan-2 Enters into Lunar Orbit: चंद्रमा की कक्षा में दाखिल हुआ चंद्रयान-2, बेहद मुश्किल बाधा पार

नई दिल्‍ली। Chandrayaan-2 to enters Moon orbit on Tuesday अपनी लॉन्चिंग के 29 दिन बाद चंद्रयान-2 मंगलवार को सुबह चंद्रमा की कक्षा में प्रवेश कर गया। चंद्रयान-2 सात सितंबर को चंद्रमा पर लैंड करेगा, इससे पहले भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (Indian Space Research Organisation, Isro) के लिए उपलब्‍ध‍ि एक मील का पत्‍थर साबित होगी। चंद्रयान-2 को 22 जुलाई को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से इसरो के सबसे भारी रॉकेट जीएसएलवी-मार्क 3 (बाहुबली) की मदद से प्रक्षेपित किया गया था। 

कम की गई यान की रफ्तार  
वैज्ञानिकों ने चंद्रमा के क्षेत्र में प्रवेश करने पर उसके गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव में पहुंचाने के लिए अंतरिक्ष यान की गति को कम की। इसके लिए चंद्रयान-2 के ऑनबोर्ड प्रोपल्‍शन सिस्‍टम को थोड़ी देर के लिए फायर किया गया। इस दौरान सभी कमांड बिल्‍कुल सटीक और सधे थे। वैज्ञानिकों की मानें तो एक छोटी सी चूक भी यान को अनियंत्रित कर सकती थी। यह बेहद मुश्किल बाधा थी जिसे चंद्रयान-2 ने सफलतापूर्वक पार कर लिया। 

एक बार फिर शुरू होगी कक्षा में बदलाव की प्रक्रिया
इसरो के वैज्ञानिकों की मानें तो चंद्रमा की कक्षा में प्रवेश करने के बाद चंद्रयान-2 31 अगस्त तक चंद्रमा की कक्षा में परिक्रमा करता रहेगा। इस दौरान एक बार फिर कक्षा में बदलाव की प्रक्रिया शुरू होगी। इसरो के मुताबिक, यान को चांद की सबसे करीबी कक्षा तक पहुंचाने के लिए कक्षा में चार बदलाव किए जाएंगे। इस तरह तमाम बाधाओं को पार करते हुए यह सात सितंबर को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर लैंड करेगा जिस हिस्‍से में अभी तक मानव निर्मित कोई यान नहीं उतरा है।

चंद्रयान-2 की अपील हर अपडेट के लिए मुझसे जुड़े रहें 
बीते दिनों चंद्रयान-2 ने धरती पर अपनी अच्छी सेहत और शानदार यात्रा के बारे में संदेश भेजा था। यान की ओर से भेजे गए संदेश में कहा गया था, 'हेलो! मैं चंद्रयान-2 हूं, विशेष अपडेट के साथ। मैं आप सबको बताना चाहूंगा कि अब तक का मेरा सफर शानदार रहा है। मैं कहां हूं और क्या कर रहा हूं, यह जानने के लिए मेरे साथ जुड़े रहें।' 22 जुलाई को प्रक्षेपित किया गया चंद्रयान-2 अब तक कई बदलावों से गुजर चुका है। छठा बदलाव 14 अगस्त को किया गया था। इस बदलाव के जरिये यान को लुनर ट्रांसफर ट्रेजेक्टरी (एलटीटी) पर पहुंचा दिया गया था। एलटीटी वह पथ है, जिस पर बढ़ते हुए यान चांद की कक्षा में प्रवेश करेगा। इस प्रक्रिया को ट्रांस लुनर इंसर्शन (टीएलआइ) कहा जाता है

बदली जाएगी चंद्रयान-2 की दिशा 
चंद्रमा का चुंबकीय प्रभाव 65,000 किलोमीटर तक का है, जिसका अर्थ है कि उस दूरी तक वह अंतरिक्ष पिंडों को खींच सकता है। चंद्रयान-2 जब चंद्रमा की कक्षा से जब लगभग 150 किलोमीटर दूर था तभी इसरो ने इसके अभिविन्‍यास की प्रक्रिया शुरू कर दी थी। इसरो ने चंद्रयान-2 को एक ऐसा वेग प्रदान किया जिससे कि यह चंद्रमा की कक्षा में आसानी से प्रवेश कर गया। वैज्ञानिकों ने चंद्रयान-2 के वेग को कम किया और इसकी दिशा भी बदली। यह भारत का दूसरा चंद्र अभियान है।  2008 में भारत ने आर्बिटर मिशन चंद्रयान-1 भेजा था। यान ने करीब 10 महीने चांद की परिक्रमा करते हुए प्रयोगों को अंजाम दिया था। चांद पर पानी की खोज का श्रेय भारत के इसी अभियान को जाता है।

बढ़ाई जा सकती है ऑर्बिटर की मियाद 
चंद्रयान-2 में तीन हिस्से हैं - ऑर्बिटर, लैंडर 'विक्रम' और रोवर 'प्रज्ञान'। लैंडर और रोवर चांद की सतह पर उतरकर प्रयोग का हिस्‍सा बनेगा जबकि ऑर्बिटर करीब सालभर चांद की परिक्रमा कर शोध को अंजाम देगा। हालांकि, इसरो अधिकारियों का कहना है कि चंद्रयान-2 के ऑर्बिटर के जीवन काल को एक साल और बढ़ाया जा सकता है। करीब 978 करोड़ रुपये के मिशन चंद्रयान-2 से जुड़े वैज्ञानिकों के मुताबिक, कक्षा में सारे बदलाव के बाद अंत में ऑर्बिटर के पास 290.2 किलोग्राम ईंधन होना चाहिए ताकि चंद्रमा के चक्‍कर लगा सके। अभी इतना ईंधन है कि चंद्रमा की कक्षा में दो साल तक चक्‍कर लगाया जा सकता है। हालांकि, सब कुछ परिस्थितियों पर निर्भर करेगा। 

Hind Brigade

Editor- Majid Siddique


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